Thursday, 4 October 2012

दाही दायम दायरा, दुःख दाई दनु दित्य-रविकर




  महानगर 
दाही दायम दायरा, दुःख-दायी दनु-दित्य ।
कच्चा जाता है चबा, चार बार यह नित्य ।
चार बार यह नित्य, रात में ताकत बढती ।
तन्हाई निज-कृत्य, रोज सिर पर जा चढती ।
इष्ट-मित्र घर दूर, महानगरों की हाही ।
कभी न होती पूर, दायरा दायम दाही ।।
हाही=जरुरत    दायम=हमेशा
दनु= दैत्यों की जननी   दित्य=दैत्य 

भौजी 
भौजी मइके क्या गईं, निकले बच्चू पंख ।
पड़ा खुला दरबार है, फूँक बुलाते  शंख ।
 फूँक बुलाते शंख, जमा सब नंगे साथी |
जमा शाम को रंग, नहीं कुछ प्रवचन-पाथी ।
किन्तु पले जासूस, जमे देखे मनमौजी । 
मोबाइल का नाश, फाट पड़ती है भौजी ।।

प्राणान्तक चोट 
जहर-मोहरा पीस के, लूँ दारू संग घोट ।
 जहर बुझी बातें करें, जब प्राणान्तक चोट । 
जब प्राणान्तक चोट, पोट न तुमको पाया।
रविकर में सब खोट, आज भर पेट अघाया ।
प्रश्न-पत्र सा ध्यान, लगाना व्यर्थ हो रहा ।
अब सांसत में जान, पीसता जहर-मोहरा ।। 

आस्था  
टंगड़ी मारे दुष्ट जन, सज्जन गिर गिर जाय ।
शैतानों की राय को, दो दद्दा विसराय ।

 दो दद्दा विसराय,  आस्था पर मत देना ।
रविकर नहीं सुहाय, नाव बालू में खेना ।

मिले सुफल मन दुग्ध, गाय हो चाहे लंगड़ी । 

वन्दनीय अति शुद्ध, मार ना दुर्मुख टंगड़ी ।।  


कान्हा 
ऋतु आई है दीजिये, नव पल्लव की छाँव ।
कलम माँगती दान है, कान्हा दया दिखाव ।
कान्हा दया दिखाव, ध्यान का द्योतक पीपल।
फिर से गोकुल गाँव, पाँव हो जाएँ चंचल ।
छेड़ो बंशी तान, चुनरिया प्रीत चढ़ाई ।
 कर दो यमुना पार, विकट वर्षा ऋतु आई ।।
ग्यानी / मूर्ख  
 दर्शन जीवन का लिए, गीता-गीत-सँदेश |
अगर कुरेदे दिन बुरे, बाढ़े रोग-कलेश |

बाढ़े रोग-कलेश, आज को जीते जाओ |
जीते रविकर रेस, भूत-भावी विसराओ |
मध्यम चिंता-मग्न, जान झंझट में हर छन |
दोनों ग्यानी मूर्ख, करें मस्ती में दर्शन |

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. कुछ भी
    कहा जाये
    बहुत ही
    कम है
    रविकर की
    कुण्डलियों में
    बहुत दम है !

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