Friday, 26 October 2012

पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा-


नैतिक शिक्षा पुस्तकें, सदाचार आधार  |
 महत्त्वपूर्ण इनसे अधिक, मात-पिता व्यवहार |

मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा |
पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा |

खेल वीडिओ गेम, जीत की हरदम इच्छा |
मारो काटो घेर, करे क्या नैतिक शिक्षा  ||

दुर्घटना के गर्भ में, गफलत के ही बीज |
कठिनाई में व्यर्थ ही, रहे स्वयं पर खीज |
रहे स्वयं पर खीज, कठिन नारी का जीवन |
मौका लेते ताड़, दोस्ती करते दुर्जन |
कर रविकर नुक्सान, क्लेश देकर के हटना |
इनसे रहो सचेत, टाल कर रख दुर्घटना ||



चुपड़ी ललचाती रहे, रुखा- सूखा खाव |
दरकिनार नैतिक वचन, बेशक नहीं मुटाव |
बेशक नहीं मुटाव, चढ़ी चर्बी है भारी |
डूब रही है नाव, ढेर  काया बीमारी |
है जीवन सन्देश,  घुसा ले अपनी खुपड़ी |
लगे हृदय पर ठेस, बुरी दिल खातिर चुपड़ी ||

 तीर्थ-यात्रा का बना, मनभावन प्रोग्राम |
दादी सुमिरन में रमी,  जय राधे घनश्याम |
जय राधे घनश्याम, चले मथुरा से काशी |
दादी गई भुलाय, बाल-मन परम उदासी |

पढ़ी दुर्दशा आज, भजन से मिलती रोटी |
लाश रहे दफ़नाय, काट के बोटी-बोटी ||

मात्र कल्पना से सिहर, जाती भावुक देह |
अब मसान की आग भी, जला सके ना नेह |

जला सके ना नेह, गेह अब खाली खाली |
तनिक नहीं संदेह, मोक्ष रविकर ने पाली |

लेकिन एक सवाल, तुम्हारा मुझको ठगना |
कैसे जाते छोड़, किया क्या कभी कल्पना ?? 

5 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति!
    ईद-उल-जुहा के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  2. एक से एक कुंडलियाँ | बहुत उम्दा प्रस्तुति |

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  3. Friday, 26 October 2012

    पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा-

    नैतिक शिक्षा पुस्तकें, सदाचार आधार |
    महत्त्वपूर्ण इनसे अधिक, मात-पिता व्यवहार |
    मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा |
    पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा |
    खेल वीडिओ गेम, जीत की हरदम इच्छा |
    मारो काटो घेर, करे क्या नैतिक शिक्षा ||

    दुर्घटना के गर्भ में, गफलत के ही बीज |
    कठिनाई में व्यर्थ ही, रहे स्वयं पर खीज |
    रहे स्वयं पर खीज, कठिन नारी का जीवन |
    मौका लेते ताड़, दोस्ती करते दुर्जन |
    कर रविकर नुक्सान, क्लेश देकर के हटना |
    इनसे रहो सचेत, टाल कर रख दुर्घटना ||
    नीति परक रविकर वचन ,गुनी जन लेते जान ,

    पूर्ती आप कर लीजिए रविकर चतुर सुजान .

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  4. सुन्दर प्रस्तुति
    बहुत बहुत बधाई
    नैतिक शिक्षा से बड़ा, मात पिता व्यव्हार।
    निश्चित जिस पर है टिका, बालक का आचार।।
    बालक का आचार, बिगाड़त वही बनावत।
    भल अनभल संस्कार, सदा मन बाल जगावत।।
    नीति परख जो धरत पग, समझ बूझ निज कक्षा।
    मात पिता व्यव्हार बडो, बड़ी न नैतिक शिक्षा।।
    दुर्घटना के गर्भ में, गफलत के हैं बीज।
    समझत याको सब मगर, देते ना तरजीह।।
    देते ना तरजीह, समस्या उनको जकडे।
    निज पर तब खिसियात, फिरे नारी पर अकड़े।।
    अवसर अपना साध, दुष्ट का दुःख दे हटना।
    इनसे रहें सचेत, टलेगी तब दुर्घटना।।
    सत्यनारायण सिंह

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