पत्नी-कस्तूरबा
अपने मन को ली मना, बा को सतत प्रणाम |
बापू करते कब मना, सामन्जस परिणाम ||
सामन्जस परिणाम, आत्म-बल प्रेम-समर्पण |
सत्य-अहिंसा तुल्य, नियंत्रित कर ली तर्षण |
बापू बड़े महान, जोड़ते भारत जन को |
उनमें बा के प्राण, भेंटती अपने मन को |
|
बेटे का कैरियर
अभिलाषा मन की अभी, करना चाहें पूर ।
बेटे के कैरिअर में, रूचि लेता भरपूर ।
रूचि लेता भरपूर, करे यह पूरी इच्छा ।
करे परिश्रम पूत, सतत उत्तीर्ण परीक्षा ।
भूल चूक पर किन्तु, करें न बाप तमाशा ।
बचपन में क्या बाप, किया न यह अभिलाषा ??
|
बेटी
कन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार ।
रखे अकेली ख्याल जब, कैसे दे आभार ।
कैसे दे आभार, किचेन में हाथ बटाई ।
ढो गोदी सम-आयु, बाद में रुखा खाई ।
हो रविकर असमर्थ, दबा दें बेटे मन्या *।
सही उपेक्षा रोज, दवा दे वो ही कन्या ।
मन्या =गर्दन के पीछे की शिरा
|
प्रिया
मिलन आस का वास हो, अंतर्मन में खास ।
सुध-बुध बिसरे तन-बदन, गुमते होश-हवाश ।
गुमते होश-हवाश, पुलकती सारी देंही ।
तीर भरे उच्छ्वास, ताकता परम सनेही ।
वर्षा हो न जाय, भिगो दे पाथ रास का ।
अब न मुझको रोक, चली ले मिलन आस का ।।
|
बहुत सुन्दर रविकर जी.
ReplyDeleteसादर
अनु
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
मुन्नों को दुलार,
मुन्नियों को दुत्कार,
कुदरत के
निराले रंग,
यही तो हैं,
हमारे जीवन के ढंग।