Tuesday, 2 October 2012

कन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार -




पत्नी-कस्तूरबा  
अपने मन को ली मना, बा को सतत प्रणाम |
बापू करते कब मना, सामन्जस परिणाम ||
सामन्जस परिणाम, आत्म-बल प्रेम-समर्पण |
सत्य-अहिंसा तुल्य, नियंत्रित कर ली तर्षण |
बापू बड़े महान, जोड़ते  भारत जन को |
उनमें बा के प्राण, भेंटती अपने मन को  |


बेटे का कैरियर 
अभिलाषा मन की अभी, करना चाहें पूर ।
बेटे के कैरिअर में, रूचि लेता भरपूर ।
रूचि लेता भरपूर, करे यह पूरी इच्छा ।
करे परिश्रम पूत, सतत उत्तीर्ण परीक्षा  ।
भूल चूक पर किन्तु, करें न बाप तमाशा ।
बचपन में क्या बाप, किया न यह अभिलाषा ??

बेटी  
कन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार ।
रखे अकेली ख्याल जब, कैसे दे आभार ।  
कैसे दे आभार, किचेन में हाथ बटाई ।
ढो गोदी सम-आयु, बाद में रुखा खाई ।
हो रविकर असमर्थ,  दबा दें बेटे मन्या *। 
  सही उपेक्षा रोज, दवा दे वो ही कन्या । 
मन्या =गर्दन के पीछे की शिरा


प्रिया 
मिलन आस का वास हो, अंतर्मन में खास ।
सुध-बुध बिसरे तन-बदन, गुमते होश-हवाश । 
गुमते होश-हवाश, पुलकती सारी देंही ।
तीर भरे उच्छ्वास,  ताकता परम सनेही ।
वर्षा हो न जाय, भिगो दे पाथ रास का  ।
अब न मुझको रोक, चली ले मिलन आस का ।।


2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रविकर जी.

    सादर
    अनु

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  2. सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    मुन्नों को दुलार,
    मुन्नियों को दुत्कार,
    कुदरत के
    निराले रंग,
    यही तो हैं,
    हमारे जीवन के ढंग।

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