पगली है तो क्या हुआ, मांस देख कामांध ।
अपने तीर बुलाय के, तीर साधता सान्ध | तीर साधता सान्ध, बांधता जंजीरों से | घायल तन मन प्राण, करे जालिम तीरों से | गर्भवती हो जाय, ढूँढ़ता कुत्ता अगली | दुष्ट मस्त निर्द्वन्द, बिगाड़ेगी क्या पगली |
संसाधन सा जानिये, संयुत कुल परिवार |
गाढ़े में ठाढ़े मिलें, बिना लिए आभार |
बिना लिए आभार, कृपा की करते वृष्टी | दादा दादी देव, दुआ दे दुर्लभ दृष्टी | सच्चे रिश्ते मुफ्त, हमेशा भला इरादा | रखे सकल परिवार, सदा अक्षुण मर्यादा | |
परिभाषित जीवन किया, दृष्टिकोण में दर्द ।
प्रेम तमन्ना कर्म पर, मजबूरी का गर्द । मजबूरी का गर्द , हुआ जीवन पर हावी ।
बंधी सांस की डोर, खींचता जीवन भावी ।
हुए अकेले राम, फिरें भटकें वन-वासित ।
मजबूरी का दंश, करे जीवन परिभाषित ।।
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दिल तो लल्लू है सखे, सगी हैं दोनों आँख |
चले फिसलता हर घरी, बुद्धि सिखाये लाख | बुद्धि सिखाये लाख, फफोले दिल के फोड़े | बाहर करे गुबार, किन्तु ना उनको छोड़े | रविकर कर विश्वास, हुआ है बड़ा निठल्लू | पल्लू की ले आस, घुमाता दिल तो लल्लू || |
गमला पौधा सुमन खुश, शुभ आँगन अन्यान्य |
संतानों के सृजन से, माँ का जीवन धन्य | माँ का जीवन धन्य, असंभव माँ विश्लेषण | दुग्ध रक्त तन दान, प्रेम-भावों का प्रेषण | बहुत बहुत आभार, नारियों पुरुष-पुरौधा | हे ममतामय नारि, खिला मन-गमला-पौधा || |
badhiya rachna
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