ढोते हम को बैल थे, अब मेट्रो का साथ ।
त्वरित वेग वाहन विकट, लगे घूमने माथ ।
लगे घूमने माथ, मिनट गिन गिन कर भोगे ।
भरे ऊर्जा पाथ, सेकेण्ड-नैनो उपयोगे ।
किन्तु करें बकवास, समय का रोना रोते ।
हुए समय के दास, यंत्र सा खुद को ढोते ।।
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प्रतियोगी बिलकुल नहीं, हैं प्रतिपूरक जान ।
इक दूजे की मदद से, दुनिया बने महान ।
दुनिया बने महान, सही आशा-प्रत्याशा ।
बढ़ता बेटी मान, बाँटता पिता बताशा ।
बच्चों के प्रतिमोह, किसे नहिं ममता होगी ?
पति पत्नी माँ बाप, नहीं कोई प्रतियोगी।।
फितरत यह इंसान की, कवि कहता दो टूक ।
टूक टूक करता रहे, नस्ल क्षेत्र पद कूट ।
नस्ल क्षेत्र पद कूट, बाँटता खुद को जावे ।
जाति-धर्म पथ गोत्र, जिला भाषा बहकावे ।
गौर सांवला वर्ण, पढ़े-अनपढ़ में बांटे ।
खड़ा अकेला पाय, अंत में खुद को काटे ।।
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संजय-दृष्टी सजग है, जात्य-जगत जा जाग ।
अब भी गर जागे नहीं, लगे पुरुष पर दाग ।
लगे पुरुष पर दाग, पालिए सकल भवानी।
भ्रूण-हत्या आघात, पाय नहिं पातक पानी ।
निर्भय जीवन सौंप, बचाओ पावन सृष्टी ।
कहीं होय न लोप, जगाये संजय दृष्टी ।।
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हो! हो! हो! होली हुई, हरफ-हरफ हुलसाय |
प्रेम-पत्रिका पाठकर, पटु-पाठक पगलाय || पटु-पाठक पगलाय, प्रेम-पर प्रस्तुत परचा | चंचल-मन चितलाय, चढ़े चाचरि चहुँ चरचा | बाग़ बाग़ दिलबाग, निखरता तन-मन धो- धो | होली सबको लाग, करें सब पागल हो! हो !! |
उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteसंजय-दृष्टी सजग है, जात्य-जगत जा जाग ।
ReplyDeleteअब भी गर जागे नहीं, लगे पुरुष पर दाग ।
लगे पुरुष पर दाग, पालिए सकल भवानी।
भ्रूण-हत्या आघात, पाय नहिं पातक पानी ।
निर्भय जीवन सौंप, बचाओ पावन सृष्टी ।
कहीं होय न लोप, जगाये संजय दृष्टी ।।
कन्या भ्रूण संरक्षण का आवाहन करती रचना .करो या मरो .कन्या का नहीं सृष्टि को मेटना है भ्रूण हत्या कन्या की .....बहुत सार्थक कुंडली ...
ram ram bhai
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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .