दम्भी ज्ञानी हर सके, साधुवेश में नार |
नीति नकारे नियम से, झटक लात दे मार |
झटक लात दे मार, चाहता लल्लो-चप्पो |
झूठी शान दिखाय, रखे नित हाई टम्पो |
जाने ना पुरुषार्थ, करे पर बात सयानी |
नहीं शमन अभिमान, करे ये दम्भी-ज्ञानी ||
|
मतदाता दाता नहीं, केवल एक प्रपंच |
एक दिवस के वास्ते, मस्का मारे मंच |
मस्का मारे मंच, महा-मुश्किल में *मालू |
इसका क्या विश्वास, बिना जड़ का अति-चालू | माली बनकर छले, खले मालिक मदमाता | मालू जाय सुखाय, मिटे मर मर मतदाता || *लता |
ब्लॉगर भी बँटने लगे, रूप रंग आकार |
शुरू किया जो पॉलटिक्स, करते बंटाधार | करते बंटाधार, बदलिए रविकर फितरत | बँटते रहे सदैव, होइए अभिमत सम्मत | रहिये नित चैतन्य, पहल रचनात्मक सादर | जुड़ें लोकहित आय, एकजुट रहिये ब्लॉगर || |
दुष्ट डाक्टर मारता, गर्भ-स्थिति नव जात |
कुक्कुर को देवे खिला, छी छी छी हालात | छी छी छी हालात, काट के बोटी-बोटी | मारो सौ सौ लात, भूत की छीन लंगोटी |
है अंधा कानून, तभी तो कातिल अक्सर |
पाय जमानत जाय, छूटते दुष्ट डाक्टर || |
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteगजब की रचना
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteरविकर की कुंडलियाँ बहुत बढ़िया होती हैं!
ReplyDeleteजुड़ें लोकहित आय, एकजुट रहिये ब्लॉगर...
ReplyDelete@ ऐसे आह्वान आपसे वरिष्ठ बंधुओं से ही अपेक्षित हैं। छंद में बात का महत्व बढ़ जाता है और वह प्रभावी भी होती है।