Sunday, 28 October 2012

जुड़ें लोकहित आय, एकजुट रहिये ब्लॉगर-




दम्भी ज्ञानी हर सके, साधुवेश में नार |
नीति नकारे नियम से, झटक लात दे मार |
झटक लात दे मार, चाहता लल्लो-चप्पो |
झूठी शान दिखाय, रखे नित हाई टम्पो |
जाने ना पुरुषार्थ, करे पर बात सयानी |
नहीं शमन अभिमान, करे ये दम्भी-ज्ञानी ||

मतदाता दाता नहीं, केवल एक प्रपंच |
एक दिवस के वास्ते, मस्का मारे मंच |
मस्का मारे मंच, महा-मुश्किल में *मालू |
इसका क्या विश्वास, बिना जड़ का अति-चालू |
 

 माली बनकर छले, खले मालिक मदमाता |
मालू जाय सुखाय, मिटे मर मर मतदाता ||
*लता

 ब्लॉगर भी बँटने लगे, रूप रंग आकार  |
शुरू किया जो पॉलटिक्स, करते बंटाधार |
करते बंटाधार, बदलिए रविकर फितरत |
बँटते रहे सदैव, होइए अभिमत सम्मत |
रहिये नित चैतन्य, पहल रचनात्मक सादर |
  जुड़ें लोकहित आय, एकजुट रहिये ब्लॉगर ||

 दुष्ट डाक्टर मारता, गर्भ-स्थिति नव जात |
कुक्कुर को देवे खिला, छी छी छी हालात |
छी छी छी हालात, काट के बोटी-बोटी |
मारो सौ सौ लात, भूत की छीन लंगोटी |
है अंधा कानून, तभी तो कातिल अक्सर |
 पाय जमानत जाय, छूटते दुष्ट डाक्टर ||

5 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  2. गजब की रचना

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  3. वाह ... बेहतरीन

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  4. रविकर की कुंडलियाँ बहुत बढ़िया होती हैं!

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  5. जुड़ें लोकहित आय, एकजुट रहिये ब्लॉगर...
    @ ऐसे आह्वान आपसे वरिष्ठ बंधुओं से ही अपेक्षित हैं। छंद में बात का महत्व बढ़ जाता है और वह प्रभावी भी होती है।

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