Tuesday, 9 October 2012

जनता जाये ऊब, उबारे कौन दुबारा




विद्यार्थी
विद्यार्थी गुणवान है, घालमेल में सिद्ध ।
व्यवहारिक विज्ञान पर, नजर जमी ज्यों गिद्ध ।
नजर जमी ज्यों गिद्ध, चिट्ठियाँ  लिखना आता ।
लेन-देन में निपुण, ढंग से है धमकाता ।
साम दाम सह दंड, जानता परम स्वार्थी ।
रहा सीखना भेद, सीख लेगा विद्यार्थी ।।

हवाई नेता  
मिटे आम के जटिल कष्ट,  हुआ आम संतुष्ट ।
आज ख़ास कोशिश करें,  किन्तु होंय खुद पुष्ट  ।

किन्तु होंय खुद पुष्ट, बने हैं गांधी वादी ।
कृपलानी के शिष्य, ताकिये है आजादी ।

पवन हंस पर बैठ, आज के गांधी आवें ।
कोड़ खेत मैदान, काट के पेड़ सतावें ।।


 उल्टा-पुल्टा
 उल्टा-पुल्टा है शुरू, मौत साल दर साल ।
जीवन को दफना चुकी, खूब बजावे गाल ।

खूब बजावे गाल, धूप में दाल गलावे ।

 समय-पौध जंजाल, माल-मदिरा उपजावे ।
रविकर कैसी लाश, मामला समझे सुल्टा ।

पट्टा को दुहराय, मौत को ढोती उल्टा ।।   



होरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
हाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।
रंग-भंग में डूब, डुबाते भारत प्यारा ।
जनता जाये ऊब, उबारे कौन दुबारा ।
यहाँ भ्रमर का दर्द, हदें हर एक पार की ।
उड़े व्यवस्था उधर,  होरिहार सरकार की ।। 

6 comments:



  1. होरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
    हाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।
    waah waah

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  2. सभी टिप्पणियाँ!
    बहुत सार्थक है!
    अच्छा टिपियाया है आपने!

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  3. बढ़िया है.......

    सादर
    अनु

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  4. होरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
    हाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।
    रंग-भंग में डूब, डुबाते भारत प्यारा ।
    जनता जाये ऊब, उबारे कौन दुबारा ।
    यहाँ भ्रमर का दर्द, हदें हर एक पार की ।
    उड़े व्यवस्था उधर, होरिहार सरकार की ।।

    बहुत खूब लिखा है

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  5. सभी दोहे समसामयिक हैं पर अब यह सूरत बदल जाये तभी कोई बात बने ,सार्थक पोस्ट|

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