सदा जय माँ जी कहिये
हिम्मत से रहिये डटे, घटे नहीं उत्साह | कोशिश चढ़ने की सतत, चाहे दुर्गम राह | चाहे दुर्गम राह, चाह से मिले सफलता | करो नहीं परवाह, दिया तूफां में जलता | चढ़ते रहो पहाड़, सदा जय माँ जी कहिये |
दीजै झंडे गाड़, डटे हिम्मत से रहिये ||
|
अतिथि-यज्ञ से दग्ध मन
सोफा पे पहुना पड़ा, बड़ा लवासी ढीठ । अतिथि-यज्ञ से दग्ध मन, पर बोलूं अति मीठ । पर बोलूं अति मीठ, पीठ न उसे दिखाऊं ।
रोटी शरबत माछ, बड़े पकवान खिलाऊं ।
गया हिला घर बजट, तोड़ के मेरा सोफा । |
शिशू निरोगी होय
पसरे सौष्ठव चेतना, अधिक देह पर ध्यान ।
अमृत से महरूम है, वह नन्हीं सी जान ।
वह नन्हीं सी जान, मान ले मेरा कहना ।
स्तन-पान संतान, करे जो तेरा बहना ।
शिशू निरोगी होय, घटे कैंसर के खतरे ।
बाढ़े शाश्वत प्रेम, नहीं बीमारी पसरे ।| |
प्रीत की कविता
गैला पर जब तक चले, पहिया ऐ मनमीत । गाडी फंसने से बचे, मिले अंत में जीत । मिले अंत में जीत, प्रीत की कविता गाओ ।
घूंसों से भयभीत, हुवे क्यूँ मीत बताओ ।
करता प्रभु से विनय, होय निर्मल जो मैला ।
गाडी चलती जाय. मिलेगा उनका गैला ।। |
अवनति का इतिहास
सामाजिक उत्थान का, रामायण दृष्टांत ।
श्रवण करे श्रृद्धा सहित, मन हो जावे शांत ।
मन हो जावे शांत , सदा सन्मार्ग दिखाता ।
अवनति का इतिहास, महाभारत है गाता ।
रविकर दे आभार, विषय बढ़िया प्रतिपादित ।
ढोंगी बाबा काज , करे सब गैर-समाजिक ।।
|
बहुत सटीक और सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteकुंडलियां नित नये विषय पर
ReplyDeleteलिख्खें और लुभायें रविकर ।